गूगल ने एक ऐसा AI मॉडल विकसित किया है जो डॉल्फिन्स के साथ बातचीत कर सकता है। DolphinGemma नाम का यह प्रोजेक्ट डॉल्फिन्स के साथ कन्वर्सेशन करने, उनकी बात समझने और उसे रेप्लिकेट करने में सक्षम है और इसे 2025 में ही लॉन्च किया जाएगा। यह टेक्नोलॉजी इंसान और डॉल्फिन के बीच कन्वर्सेशन का नया रास्ता खोलेगी। यह पहल गूगल के उस प्लान के तहत है जिसके अनुसार Google जेनरेटिव AI-फोकस्ड टूल लॉन्च करेगा।
DolphinGemma को गूगल ने Georgia Institute of Technology और Wild Dolphin Project के साथ मिलकर बनाया है। यह AI मॉडल डॉल्फिन की आवाज़ों को समझने और उनका सही तरीके से जवाब देने में सक्षम है। इसे डॉल्फिन्स के नेचुरल हैबिटेट से ली गयी 40 सालों की रिकॉर्डिंग्स से प्रशिक्षित किया गया है, जिससे यह डॉल्फिन्स की लैंग्वेज, जैसे क्लिक्स, सीटी और अन्य आवाज़ों को पहचान सकता है। इस मॉडल की मदद से, गूगल टीम यह जानने की कोशिश कर रही है कि डॉल्फिन किस आवाज़ का इस्तेमाल अपनी किस भावना या ज़रूरत को बताने के लिए करती हैं।
DolphinGemma न सिर्फ डॉल्फिन के कन्वर्सेशन को समझने में सक्षम है, बल्कि यह उन ध्वनियों को भी पहचान सकता है जो डॉल्फिन्स खेलते वक्त, नई चीज़ों को खोजते वक्त, या आपस में झगड़ते वक्त उपयोग करती हैं। इसके साथ CHAT device का भी निर्माण किया गया है, जिसे डाइवर्स पानी के नीचे पहनकर डॉल्फिन जैसे साउंड्स उत्पन्न कर सकते हैं। इससे डॉल्फिन्स के साथ रियल-टाइम संवाद संभव हो सकेगा।
DolphinGemma प्रोजेक्ट दुनिया भर के अन्य AI-बेस्ड प्रोजेक्ट्स में से एक है, जो interspecies conversation करने की कोशिश कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, Earth Species Project जो कौवों की लैंग्वेज समझने का प्रयास कर रहा है, और CETI जो स्पर्म व्हेल्स से कंवर्सशन पर काम कर रहा है। इन प्रोजेक्ट्स का मुख्य उद्देश्य यह है कि इंसान और जानवरों के बीच के कन्वर्सेशन के तरीके को बदलना, ताकि हम उनके व्यवहार, भावनाओं और ज़रूरतों को बेहतर समझ सकें।
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गूगल का DolphinGemma प्रोजेक्ट न केवल एक टेक्नोलॉजिकल अचीवमेंट है, बल्कि यह इंसान और जानवरों के बीच कन्वर्सेशन स्थापित करने का नया रास्ता खोलेगा। डॉल्फिन जैसी बुद्धिमान स्पीशीज के साथ कन्वर्सेशन कर पाना हमारे लिए एक बड़ी उपलब्धि है, जो हमें उनकी दुनिया को बेहतर समझने में मदद करेगी। यह प्रोजेक्ट एन्वॉयरमेंट और बायोडायवर्सिटी प्रोटेक्शन के लिए भी महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। आने वाले टाइम में जब यह मॉडल साइंटिफिक कोलैबोरेशन के लिए लॉन्च होगा, तो हमें यह देखने को मिलेगा कि इंसान और जानवरों के बीच की सीमाएँ किस तरह धुंधली होती जा रही है।
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