जिम्बाब्वे में कृषि कंपनी Parrogate का एक आइडिया इन दिनों काफी ज्यादा चर्चा में है। कंपनी ने अपने सप्लायर्स को भुगतान के लिए ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी पर काम करते हुए Stablecoin अपनाया है और यह Agriculture Sector के लिए काफी ज्यादा गेमचेंजर साबित हो गया है। इससे जहां एक तरफ कंपनी के सीमा पार व्यापार में तेजी आई, वहीं किसानों को देरी से पेमेंट मिलने की समस्या भी दूर हो गई है। यही कारण है कि अफ्रीकी कृषि बाजार में Stablecoins को तेजी से अपनाया जा रहा है। ऐसे में अनुमान जताया जा रहा है कि व्यापार में सुलभता के कारण अफ्रीकी कृषि बाजार की अनुमानित वैल्यू 2030 तक 1 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच सकती है।
दरअसल Agriculture Sector में भी टेक्नोलॉजी के बढ़ते प्रभाव के बीच दुनियाभर में किसानों की आमदनी अब सिर्फ खेती-किसानी पर निर्भर नहीं रह गई है। दुनिया के कई देश किसानों के लिए पारंपरिक बैंकिंग सिस्टम की खामियों को दूर करने के लिए Stablecoin को अपना रहे हैं, तो इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि आखिर Stablecoin क्या होता है और यह किसानों के लिए कैसे फायदेमंद है और भारत में इसको लेकर क्या संभावनाएं हैं।
दरअसल स्टेबलकॉइन (Stablecoin) एक तरह की डिजिटल करेंसी (cryptocurrency) होती है, जो ब्लॉकचेन आधारित टेक्नोलॉजी पर काम करती है और इस करेंसी की कीमत अमेरिकी डॉलर (USD), यूरो (EUR) या सोना (Gold) आदि के समान माना जाती है। उदाहरण के लिए यदि किसी व्यक्ति के पास 1 डॉलर है तो वह उसके बदले 1 Stablecoin ले सकता है और जब वह Stablecoin वापस करता है तो उसे 1 डॉलर वापस मिल जाता है। इससे किसान को सबसे बड़ा फायदा ये है कि वो अपनी उपज वैश्विक स्तर पर कहीं भी बेच सकता है और तत्काल भुगतान प्राप्त कर सकता है। इसके अलावा क्रिप्टो मार्केट में जिस तरह का बहुत अधिक उतार-चढ़ाव दिखता है, उसका असर Stablecoin पर नहीं होता है। Stablecoin की वैल्यू बहुत ज्यादा ऊपर-नीचे नहीं होती है, जैसे कि बिटकॉइन या ईथर जैसी अन्य क्रिप्टोकरेंसी की होती है।
चूंकि क्रिप्टोकरेंसी में वैश्विक लेनदेन भी काफी तेज गति से होता है, ऐसे में इससे किसानों के पेंमेंट अटकने की समस्या दूर होती है। चूंकि यह टेक्नोलॉजी ब्लॉकचेन पर आधारित होती है, इसलिए यह अधिक पारदर्शी होने के साथ-साथ सुरक्षित भी रहती है। हालांकि दुनिया के कई देशों में नियामक संस्थों ने क्रिप्टोकरेंसी को लेकर कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं बनाए हैं। भारत में भी इसको लेकर असमंजस की स्थिति है।
भारत एक कृषि प्रधान देश है और यहां की लगभग 60 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है। ऐसे में भारतीय किसानों के सामने यह सुनहरा मौका है कि वे अपना उत्पाद वैश्विक बाजार में बेचकर अच्छी कमाई कर सकते हैं। नाइजीरिया के किसानों ने Stablecoin USDT को अपनाकर वैश्विक खरीदारों से सीधे लेन-देन शुरू किया है और अच्छा लाभ उठा रहे हैं। USDT Stablecoin में विनिमय के कारण उन्हें स्थानीय मुद्रा की गिरावट का नुकसान नहीं उठाना पड़ता। कुछ ऐसी ही स्थिति अर्जेंटीना और केन्या के किसानों की भी है, जो अपने उत्पाद सीधे वैश्विक बाजार में बेच रहे हैं। चूंकि Web3 टेक्नोलॉजी के मामले में भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा हब है, ऐसे में भारत Agriculture Startup अच्छा काम कर सकते हैं, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती ये है कि भारत में Stablecoin के इस्तेमाल पर अभी तक स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं हैं। अगर आप जानना चाहते हैं कि USDT क्या है तो इस लिंक पर क्लिक करें।
भारत में Stablecoin को अभी तक मंजूरी नहीं मिली है, दरअसल इसे अपनाने को लेकर कुछ कानूनी बाधाएं भी हैं, जिनके बारे में जानना बेहद जरूरी है।
दरअसल भारतीय रिजर्व बैंक Stablecoin को लेकर इसलिए चिंतिंत है क्योंकि ये डिजिटल करेंसी भारत की मौद्रिक नीति के साथ-साथ वित्तीय स्थिरता के लिए भी बड़ा बन सकती है। RBI को यह आशंका इसलिए हैं क्योंकि वर्तमान में वैश्विक रूप में अधिकांश Stablecoin की कीमत अमेरिकी डॉलर से आंकी जाती है। ऐसे में मुद्रा का ‘डॉलरइजेंशन’ होने का खतरा रहता है और रुपए में गिरावट आ सकती है। भारत की मौद्रिक नीति कमजोर हो सकती है।
Stablecoin को लेकर दूसरी सबसे बड़ी बाधा ये है कि ये निजी संस्थाओं के द्वारा जारी किए जाते हैं और सरकार का इस पर नियंत्रण नहीं होता है। ये डिजिटल करेंसी निगरानी से बाहर होती है। भारत के साथ-साथ कई विकासशील देश केंद्रीय बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) को ज्यादा सुरक्षित मानते हैं।
भारत में कानूनी बाधाओं के साथ-साथ कुछ परंपरागत बाधाएं भी है। देश में जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा पारंपरिक बैंकों और सरकारी संस्थानों पर ही विश्वास रखता है। ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों के लिए किसी निजी संस्था द्वारा Stablecoin पर विश्वास बनाना मुश्किल है।
Stablecoin के जरिए भारतीय कृषि को एक ऐसा सुनहरा मौका प्राप्त हो सकता है, जिसके जरिए भारतीय किसान सीधे वैश्विक मंच पर अपने उत्पाद बेच सकता है और उचित दाम प्राप्त कर सकता है। अब इस नई टेक्नोलॉजी के जरिए भारत के सामान्य किसान तक ले जाने की जरूरत है। ऐसे में यदि सही दिशा में कदम उठाए जाएं तो कुछ ही वर्षों में भारत का किसान भी डिजिटल मुद्रा में लेन-देन के जरिए अंतरराष्ट्रीय कृषि व्यापार में उभर सकता है।
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