डिजिटल दुनिया में NFTs (Non-Fungible Tokens) ने क्रांति ला दी है। आर्ट, म्यूजिक, कलेक्टिबल्स और वर्चुअल रियल एस्टेट जैसे डिजिटल एसेट्स की दुनिया में NFT ने ओनरशिप की परिभाषा ही बदल दी है। भारत में भी NFTs तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं। लेकिन जहां इनकी डिमांड बढ़ी है, वहीं इनके लीगल स्टेटस को लेकर कई सवाल उठने लगे हैं। भारत में डिजिटल एसेट्स के लिए कानून अभी डेवलप हो रहा है और NFTs की स्थिति पूरी तरह स्पष्ट नहीं है। इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि भारत में NFTs की लीगल स्थिति क्या है, उन पर टैक्सेशन कैसे होता है, किन कानूनों का उन पर प्रभाव पड़ता है और भविष्य में किन कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
NFTs यानी नॉन-फंजिबल टोकन्स डिजिटल एसेट्स होते हैं जिन्हें Blockchain Technology पर रिकॉर्ड किया जाता है। ये यूनिक होते हैं और एक-दूसरे से बदले नहीं जा सकते। उदाहरण के लिए, एक बिटकॉइन को दूसरे बिटकॉइन से बदला जा सकता है, लेकिन एक NFT की जगह कोई दूसरा NFT नहीं ले सकता।
यहां एक महत्वपूर्ण बात समझनी ज़रूरी है जब आप एक NFT खरीदते हैं, तो आपको सिर्फ उस डिजिटल आइटम का “ओनरशिप सर्टिफिकेट” मिलता है, ना कि उसके कॉपीराइट राइट्स। यानी, अगर आपने किसी आर्टवर्क का NFT खरीदा है, तो आप उसे प्रमोट कर सकते हैं या रीसेल कर सकते हैं, लेकिन बिना परमिशन के उसे रीप्रोड्यूस, मॉडिफाई या डिस्ट्रिब्यूट नहीं कर सकते।
भारत में NFTs पर कोई सीधा कानून नहीं है, जो उन्हें एक्सप्लिसिटली रेगुलेट या बैन करे। बता दे कि 2022 के बजट में भारत सरकार ने NFTs को Virtual Digital Assets (VDA) की श्रेणी में रखा उसके बाद से किसी भी बजट सत्र में सरकार ने इसपर बात नहीं की। इससे NFT की टैक्सेबल स्थिति तो तय हुई, लेकिन उनके ट्रांजैक्शन या एक्सचेंज के नियम अभी भी पूरी तरह से तय नहीं हैं। इस समय, NFTs पर मुख्यतः टैक्सेशन, कंज्यूमर प्रोटेक्शन और इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी लॉ लागू होते हैं, लेकिन इनके लिए कोई डेडीकेटेड रेगुलेटरी फ्रेमवर्क अभी तक नहीं बनाया गया है।
NFTs से जुड़े मुनाफे को भारत में टैक्स किया जाता है:
कानून जो NFTs पर लागू हो सकते हैं:
क्रिप्टोकरेंसी पर निर्भरता: ज्यादातर NFT ट्रांजैक्शन क्रिप्टोकरेंसी के माध्यम से होते हैं। भारत में क्रिप्टोकरेंसी की लीगल स्थिति अभी भी अस्पष्ट है। हालांकि 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने RBI के बैन को हटा दिया था, लेकिन अभी भी कोई फुली क्लियर रेगुलेशन नहीं है। इससे NFT की लीगल स्थिति पर भी असर पड़ता है।
स्पेकुलेटिव नेचर और धोखाधड़ी का जोखिम: NFT का मूल्य उनके यूनिकनेस और डिमांड पर आधारित होता है, जो अक्सर बहुत वोलाटाइल होता है। इसकी वजह से फ्रॉड, फेक प्रोजेक्ट्स और मार्केट मैनिपुलेशन का खतरा बढ़ जाता है।
पर्यावरणीय प्रभाव: NFTs को मिंट और ट्रांसफर करने में भारी एनर्जी खर्च होती है, खासकर प्रूफ-ऑफ-वर्क ब्लॉकचेन पर। इससे पर्यावरणीय चिंताएं भी बढ़ी हैं, जो कि इनके जनरल एक्सेप्टेंस में रुकावट पैदा कर सकती हैं।
भारत में NFTs फिलहाल लीगली अलाउड हैं, लेकिन एक समर्पित रेगुलेटरी फ्रेमवर्क की कमी के कारण उनकी स्थिति अनिश्चित है। टैक्सेशन और कुछ मौजूदा कानूनों के तहत तो इन्हें कवर किया गया है, लेकिन फिर भी NFTs से जुड़े इन्वेस्टमेंट या ट्रांजैक्शन करते समय सावधानी बरतनी ज़रूरी है।
भविष्य में जैसे-जैसे भारत में डिजिटल एसेट्स पर लॉ डेवलप होंगे, वैसे-वैसे NFTs की लीगल क्लैरिटी और ग्रोथ दोनों बढ़ने की उम्मीद है। फिलहाल, NFT बायर्स और क्रिएटर्स के लिए जरूरी है कि वे सभी कानूनी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए ही इस क्षेत्र में कदम बढ़ाएं।
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