Orissa High Court ने क्रिप्टोकरेंसी को लेकर एक बड़ा स्टेटमेंट जारी किया है, जो भारत के क्रिप्टोकरेंसी के निवेशकों के लिए काफी बड़ी ख़ुशी की खबर है। दरअसल उड़ीसा हाई कोर्ट ने क्रिप्टोकरेंसी से जुड़े एक हालिया मामले में फैसला सुनाया है कि क्रिप्टो डीलिंग को भारत में अवैध नहीं माना जा सकता है। यह स्टेटमेंट जारी करते हुए उड़ीसा हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति शशिकांत मिश्रा की एकल पीठ ने फर्जी क्रिप्टोकरेंसी कंपनी के नाम से पोंजी/मल्टी-लेवल मार्केटिंग (MLM) स्कीम चलाकर निवेशकों को ठगने के आरोपों का सामना कर रहे दो व्यक्तियों को जमानत दी है। न्यायमूर्ति ने कहा कि क्रिप्टो में लेनदेन अवैध नहीं है और ऐसे में इसे Odisha Protection of Interests of Depositors (in Financial Establishments) Act के तहत अपराध नहीं माना जा सकता है, जिसके चलते फरियादी जमानत के हकदार हैं। एकल पीठ ने कहा, कि Prize Chits and Money Circulation Schemes (Banning) Act के अर्थ में क्रिप्टोकरेंसी पैसा नहीं हैं और जाम जनता द्वारा क्रिप्टो में किया गया निवेश OPID Act के अर्थ में डिपोजिट के नेचर का हिस्सा नहीं हो सकता।
जानकारी के अनुसार याचिकर्ताओं पर आरोप है कि उन्होंने कथित तौर पर अपना एक ट्रस्ट वॉलेट बनाकर Yes World Token नाम की क्रिप्टोकरेंसी में निवेश करने और एक कम्युनिटी नेटवर्क बनाकर अधिक रिटर्न प्राप्त करने के लिए लोगों को लुभाया था। इन आरोपियों ने निवेशकों को नए सदस्यों को जोड़कर उनकी संख्या के अनुरूप इंटरेस्ट और बोनस देने का लालच भी दिया था।
मामले में फैसला सुनाते हुए, न्यायमूर्ति श्री मिश्रा ने कहा कि आरोपियों ने केवल लोगों को क्रिप्टो में ट्रेड करने के लिए मनाया था, यहाँ ऐसा कुछ भी रिकॉर्ड में नहीं है, जिससे यह साबित होता हो कि उन्होंने किसी व्यक्ति को बेईमानी से कोई संपत्ति देने के लिए प्रेरित किया हो। इसके साथ ही इस बात का भी कोई साक्ष्य नहीं है कि किसी भी व्यक्ति ने आरोपियों को कोई भी फंड ट्रांसफर किया हो। अपनी बात को आगे बढाते हुए, न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि व्यक्ति से लेकर प्लेटफॉर्म तक अपनाई गई कार्यप्रणाली के चलते यह नहीं कहा जा सकता है कि याचिकर्ताओं द्वार किसी भी व्यक्ति को धोखा दिया गया है। कोर्ट ने यहाँ विशेष रूप से उस तथ्य के मद्देनजर यह बात कही, जिसके अनुसार किसी भी व्यक्ति द्वारा निवेश की गई राशि उसके ट्रस्ट वॉलेट में सुरक्षित रहती है। कोर्ट ने कहा कि इस तरह धारा 420 के तहत प्रथम दृष्टया अपराध नहीं बनता है और न ही कोई ऐसा सबूत जैसे दस्तावेज, रिकॉर्ड है, जो हेरफेर की पुष्टि करते हो, जिससे IPC की धारा 467/468/471 के तहत अपराध को अट्रैक्ट किया जा सके।
बताते चले कि ओड़िसा हाई कोर्ट का फैसला, भारत सरकार के उस फैसले को भी आधार बनाता है, जिसके अनुसार भारत में क्रिप्टोकरेंसी ट्रेडिंग प्रॉफिट पर 30% टैक्स और 1% TDS लिया जाता है। इस तरह क्रिप्टोकरेंसी ट्रेडिंग पर भारत सरकार टैक्स वसूलती है। साथ ही किसी भी क्रिप्टोकरेंसी एक्सचेंज को भारत में अपनी सेवाएँ देने के लिए भारत सरकार के FIU के साथ रजिस्टर्ड होना अनिवार्य हैं। ऐसे में अगर जब सरकार क्रिप्टोकरेंसी पर टैक्स वसूल रही है और उससे सम्बंधित प्लेटफ़ॉर्म्स पर निगरानी रख रही हैं तो क्रिप्टो कैसे इललीगल हो सकता है। ओड़िसा हाई कोर्ट के फैसले पर आपके जो भी विचार हो आप हमारे साथ कमेन्ट बॉक्स में शेयर कर सकते हैं।
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