इंटरनेट और Web की दुनिया लगातार विकसित हो रही है। एक दौर था जब हम सिर्फ वेबसाइटों पर लिखी जानकारी पढ़ सकते थे, इस इंटरनेट के शुरूआती चरण को Web1 कहा गया। इसके बाद Web2 आया, जिसने सोशल मीडिया, ई-कॉमर्स और यूज़र-जनरेटेड कंटेंट के लिए रास्ता खोला, इसमें यूजर केवल कंटेंट का कंज्यूमर नहीं रह गया बल्कि कंटेंट क्रिएटर भी बन गया, लेकिन इसने हमारे डाटा और डिजिटल आइडेंटिटी का कण्ट्रोल बड़े प्लेटफॉर्म्स को सौंप दिया।
अब इन्टरनेट की दुनिया में एक नया आयाम जोड़ने के वादे के साथ इसका तीसरा चरण Web3 हमारे सामने है, जो कंटेंट क्रिएटर को कंटेंट की ओनरशिप देने की बात करता है और इस तरह से यह इंटरनेट को फिर से परिभाषित करने की कोशिश कर रहा है। इस ब्लॉग में हम Web3 क्या है, इससे जुड़ी टेक्नोलॉजी, इसके एप्लीकेशन, इसके सामने आ रहे चेलेंज और इसके भविष्य के बारे में बात करेंगे।
Web1: Read Only
1990 के दशक में अपने शुरूआती दौर में इन्टरनेट बेहद सरल था, जिस पर यूज़र केवल वेबसाइट पर दी गयी जानकारी पढ़ सकते थे। इस दौर में यूज़र सिर्फ कंटेंट को कंज्यूम कर सकते थे, वे स्वयं अपनी और से इसमें कोई बदलाव करने में सक्षम नहीं थे। यह दौर HTML पर बनी हुई स्टेटिक वेबसाइट का था, जहाँ कंटेंट बड़े ओर्गेनाइजेशन या कंपनियां ही पब्लिश करती थीं। Web1 एक डिजिटल लाइब्रेरी जैसा था, जहाँ केवल कंटेंट को पढ़ा जा सकता था।
Web2: Read-Write Only
Web2 की शुरुआत 2005 के आसपास हुई, इसने इंटरनेट के वन-वे ट्रेफिक को टू-वे कन्वर्सेशन में बदल दिया। हम अभी इन्टरनेट के इसी चरण में है, जिसमें यूज़र कंटेंट के कंज्यूमर के साथ साथ कंटेंट क्रिएटर भी बन गया है, उदाहरण के लिए हम अब किसी वेबसाइट पर फोटो, वीडियो, कमेंट, ब्लॉग जैसे कंटेंट खुद भी अपलोड कर सकते हैं, Web1 में यह सुविधा अवेलेबल नहीं थी। Facebook, YouTube, Instagram और X जैसे प्लेटफॉर्म्स इन्टरनेट के इस दौर के फ्लैग बेयरर हैं, जिन्होंने हमें कंटेंट क्रिएशन की आजादी दी।
लेकिन इस नई आज़ादी की कीमत हमें अपने पर्सनल डाटा पर कण्ट्रोल खोने के रूप में चुकानी बड़ी। Web2 के सेंट्रलाइज़ नेचर के कारण हम कौन हैं, कहाँ रहते हैं, हमारी पसंद, ना पसंद जैसी पर्सनल जानकारियां और हमारे डिजिटल फुटप्रिंट से जुड़ा पूरा डाटा बड़ी कंपनियों के हाथों में चला गया। जिसका उपयोग करके और बेचकर इन कंपनियों ने हमारे जीवन को प्रभावित करना शुरू कर दिया है। कई मामलों में इसका असर यूजर और उसके जीवन पर नकारात्मक रूप से पड़ने लगा है, इसी कारण इन्टरनेट के ऐसे स्वरुप की मांग उठी जिसमे यूजर के पर्सनल डाटा पर उसी का अधिकार हो।
यहीं से Web3 के डेवलपमेंट की जरुरत महसूस हुई और इन्टरनेट ने अपने विकास के तीसरे चरण में प्रवेश किया।
Web3: Read-Write-Own
यह हमारे डिजिटल फुटप्रिंट पर बड़ी कंपनियों के एकतरफा नियंत्रण के विरुद्ध एक आंदोलन के रूप में सामने आया है। Web3 का उद्देश्य इन्टरनेट का डिसेंट्रलाइजेशन करना और यूजर का उसके पर्सनल डाटा और उसके द्वारा बनाए गए कंटेंट पर अधिकार सुनिश्चित करना है। इसी कारण से Web3 और Blockchain एक दुसरे के पर्याय नज़र आते हैं, ब्लॉकचेन इसका आधार है क्योंकि इसमें एडमिनिस्ट्रेशन और अथोरिटी के लेवल पर ही डिसेंट्रलाइजेशन को इम्प्लीमेंट कर दिया गया है। ब्लॉकचेन में डाटा हजारों नोड्स पर स्टोर किया जाता है और हर इंटरेक्शन, एसेट या आइडेंटिटी को क्रिप्टोग्राफ़ी के माध्यम से सिक्योर किया जाता है।
Web3 में यूजर डिजिटल वॉलेट के द्वारा अपनी डिजिटल आइडेंटिटी खुद ही स्थापित करता है और ZK Proof जैसे उपायों के माध्यम से केवल आवश्यक जानकारियाँ ही सर्विस प्रोवाइडर को उपलब्ध करवाता है। Web3 में केवल आइडेंटिटी और डिजिटल कंटेंट पर ओनरशिप को ही नहीं सुनिश्चित किया जा रहा बल्कि प्लेटफ़ॉर्म गवर्नेंस को भी DAO जैसे उपायों के माध्यम से कम्युनिटी ड्रिवेन और यूजर सेंट्रिक बनाया जा रहा है।
आइये अब उन टेक्नोलॉजी के बारे में जानते हैं जिन पर Web3 आधारित है,

इन्टरनेट के तीसरे चरण में Blockchain वही काम करती है जो Web2 में सेंट्रल सर्वर करते हैं, इसके साथ ही इसमे किसी कंपनी या अथोरिटी का कण्ट्रोल नहीं होता है। इससे ट्रस्ट इससे जुड़े सभी यूज़र्स के बीच डिवाइड हो जाता है।
इन्टरनेट का यह तीसरा चरण अपार संभावनाओं को लेकर आया है, लेकिन फिलहाल यह डेवलपिंग फेस में है। इसके एडॉप्शन और विकास से जुड़ी बहुत सी चुनोतियाँ अब भी हमारे सामने हैं।
इसमें सबसे बड़ी समस्या स्केलेबिलिटी की है, Ethereum जैसी प्रमुख ब्लॉकचेन अभी भी बहुत धीमी हैं, जिसके कारण यह अभी भी बड़ी संख्या में यूज़र्स को सम्हाल पाने में सक्षम नहीं है। Blockchain Trilemma को हल करने के लिए किए जा रहे उपाय भी अभी तक अपने इनिशियल फेस में ही है।
इसके अलावा UX यानी User Experience इतना काम्प्लेक्स है कि नए यूज़र्स के लिए वॉलेट, गैस फीस और Private Keys जैसी टेक्नोलॉजी को समझना मुश्किल होता है।
इससे जुड़े रेगुलेटरी फ्रेमवर्क भी अभी स्पष्ट नहीं है, जिससे बहुत सारे एक्सपेरिमेंट्स अब भी ग्रे एरिया में आते हैं जिसके कारण स्कैम और रग पुल जैसे खतरे अभी भी बने हुए हैं।
हालांकि यह अभी अपने शुरुआती दौर में है, लेकिन इसकी दिशा बहुत स्पष्ट है। Layer-2 Solutions जैसे Arbitrum और zkSync स्केलेबिलिटी की समस्या को हल करने में जुटे हैं। अकाउंट Abstraction जैसे आईडिया धीरे-धीरे यूजर के ब्लॉकचेन से जुड़ने की प्रोसेस को आसान बना रहे हैं। Web2 कंपनियाँ भी इस पर प्रयोग शुरू कर चुकी हैं, जैसे Reddit का कलेक्टिब्ल अवतार या Nike का NFT Platform इसके उदाहरण हैं। सरकारें भी अब अपने e-governance मॉडल में इसके प्रयोग की संभावनाए तलाश रही हैं, Digital ID और पब्लिक स्पेंडिंग को ट्रैक करने जैसे एप्लीकेशन पर भी काम हो रहा है।
कई एनालिस्ट मानते हैं कि हम फिलहाल Web2.5 के युग में जी रहे हैं और बहुत जल्द ही हम इन्टरनेट के तीसरे चरण की और बढ़ने वाले हैं । Web3 की शुरुआत इन्टरनेट के उस युग की और बढ़ने की दिशा में पहला ठोस कदम है, जहाँ यूज़र सिर्फ कंज्यूमर नहीं रह जाता, बल्कि क्रिएटर और स्टैकहोल्डर भी बन जाता है।
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